Women Empowerment: "बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ" के नारे का असल मायना समाज को समझाया इस कपल ने, फिर बेटियों ने किया माँ -बाप के साथ किया ये काम
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Women Empowerment: “साथ में अपने खुशियों की सौगात लाई है,नन्ही सी परी आज तुम्हारे घर पर आई है\”ये पंक्तियां कहने और सुनने में कितनी अच्छी लग रही हैं।लेकिन देश में आज भी करोड़ों लोग नन्ही परी के घर आने से मायूस हो जाते हैं।कई तो गर्भ में ही मरवा देते हैं।बेटियां हर क्षेत्र में अपने आपको साबित कर रही हैं।उनकी कामयाबी ये बताने के लिए काफी है कि लड़कियां लड़कों से किसी भी बात में कमतर नहीं हैं।बेटियों की कामयाबी से बेटियों के प्रति रूढीवादी सोच रखने वाले लोगों के मुंह बंद हो जाते हैं।
बेटियां बेटों से बढ़कर मां-बाप को प्यार और सम्मान देती हैं अब तो बेटियां मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा भी बन रही हैं।ताज़ा उदाहरण पानीपत का है।जहां चार बेटियों ने अपने माता-पिता की 50वीं वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाई।जिसमें शादी-विवाह समारोह से कहीं बढ़ चढ़कर अपने परिचितों,रिश्तेदारों को बुलाकर गोल्डन जुबली का यह भव्य कार्यक्रम मनाया गया।इस कार्यक्रम का संदेश समाज में यह गया कि बेटियां बेटों से कहीं अधिक माता-पिता के प्रति समर्पित भाव रखती हैं।
बेटियों ने मनाई माता-पिता की 50वीं वर्षगांठ
बेटियों के प्रति घृणित सोच के कारण लगातार लिंग अनुपात में भी असंतुलन पैदा होता रहा है।जिसे लेकर देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीड़ा उठाते हुए हरियाणा में पानीपत की धरती से 2015 में ”बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” का नारा देकर समाज में एक सकारात्मक संदेश दिया था। प्रदेश सरकारों और प्रशासन ने भी इसे महत्वपूर्ण जरूरत समझते हुए कई क्रांतिकारी कदम उठाए और आज बेहद सकारात्मक परिणाम सबके सामने हैं।
बेटे भाग्य से,बेटियां सौभाग्य से पैदा होती हैं
सामाजिक रूप से भी बेटों से कहीं अधिक बढ़कर बेटियों ने माता-पिता और समाज का नाम रोशन किया है।तमाम उच्च पदों पर आसीन होकर,खेलों में मेडल जीतकर, सामाजिक सेवाओं में अपनी दक्षता को प्रमाणित करके।पानीपत के गांव नारा में जन्मे नारायण दास चार बेटियों मंजू-श्वेता-शैलजा साविका के पिता हैं, लेकिन बेहद सौभाग्यशाली हैं।उनका मानना है कि बेटे भाग्य से होते हैं लेकिन बेटियां सौभाग्य वालों की होती हैं ।नगर परिषद के पूर्व अकाउंटेंट नारायण दास फिलहाल तहसील टाउन पानीपत में रह रहे हैं और इनकी चारों बेटियां शादीशुदा हैं।अपने परिवारों की जिम्मेदारियां उठाने के साथ-साथ ये बेटियां अपने माता-पिता की भी खूब देखभाल करती हैं। पिता नारायण दास ने कहा कि बेटे की आस में लगातार तीन बेटियां हुई, जब चौथी बेटी पैदा हुई तो वह काफी मायूस और दुखी थे।
उस दौरान उनके माता-पिता ने उनका खूब हौसला बांधा और इन बेटियों को खूब पढाने-लिखाने की सलाह दी।नारायणदास ने हमेशा बेटियों को पूरी तरह से संस्कारी रखते हुए समाज के बारे खूब ज्ञान दिया और खूब मन लगाकर पढ़ाया लिखाया।बेटियां सामाजिक ढांचे में रहती हुई खूब सुशिक्षित बनी।चारों बेटियां पोस्ट ग्रेजुएट-एमफिल हैं।पिता नारायण दास ने बताया कि चारों दामाद भी उनकी पूरी सेवा करते हैं और कभी बेटियों को आने-जाने से नही रोकते।बेटियों को पाकर मैं बहुत धन्य महसूस कर रहा हूं।उनके अनुसार शायद अगर बेटे होते तो मुझे इतना नहीं संभाल पाते।