Research News: क्या मोबाइल से पुरुषों में आ रही है नपुंसकता, इस रिसर्च के मुताबिक दुनिया भर में पुरुषों के स्पर्म काउंट पर पड़ रहा है ये असर
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Research News: 2006 में ‘चिल्ड्रेन ऑफ मेन’ नाम की एक ब्रिटिश फिल्म आई। इस फिल्म में ऐसी दुनिया दिखाई गई थी, जिसमें एक महामारी के कारण सभी पुरुष नपुंसक हो गए थे। सालों से एक भी बच्चे ने जन्म नहीं लिया। फिल्म में जब भी कोई कम उम्र का नौजवान मरता है तो पूरी दुनिया के न्यूज चैनलों में खबर चलती। लोग शोक मनाते कि मानवता के आखिरी चिरागों में से एक बुझ गया।
खैर ये फिल्म तो काल्पनिक कहानी थी। आज दुनिया की जनसंख्या देखकर कोई ऐसी बात सोच भी नहीं सकता कि जनसंख्या कम होना भी चिंता का विषय हो सकता। लेकिन हाल ही में स्विट्जरलैंड में हुई एक रिसर्च ने वैज्ञानिकों को पुरुषों में घटते स्पर्म काउंट को लेकर फिर से फिक्र में डाल दिया है।
ह्यूमन रिप्रोडक्शन अपडेट जर्नल में छपी एक रिसर्च के मुताबिक दुनिया भर में पुरुषों का स्पर्म काउंट हर साल 1% की दर से कम हो रहा है। हालांकि ऐसा क्यों हो रहा है इस पर वैज्ञानिक अभी एक मत नहीं हो पाए हैं। और इसके कारण खोजने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। इसी कोशिश में एक कड़ी और जोड़ते हुए हाल ही में फर्टिलिटी एंड स्टेरिलिटी जर्नल में भी एक रिसर्च छपी।
जिसमें पता चला कि घटते स्पर्म काउंट के पीछे हमारे मोबाइल फोन का हाथ भी हो सकता है। रिसर्च में ये भी सामने आया कि फोन चाहे जेब में हो या बैग में दोनों ही सूरतों में इसका एक जैसा असर पड़ता है।
मोबाइल फोन के स्पर्म काउंट पर असर के बारे में पहले चूहों पर कई रिसर्च हो चुकी हैं। लेकिन इंसानों पर ये अपनी तरह की यूनिक रिसर्च थी। क्या मोबाइल फोन से नपुंसकता हो सकती है? क्या घटता स्पर्म काउंट चिंता की बात है? आइए इन सब के बारे में समझते हैं। लेकिन पहले इस रिसर्च में और क्या-क्या बातें सामने आईं उन्हें नीचे लगे क्रिएटिव से जानते हैं।
दुनिया भर में स्पर्म काउंट हो गया है आधा?
हालांकि, मोबाइल इकलौता दोषी नहीं है। दुनिया भर में पुरुषों का स्पर्म काउंट लगातार घट रहा है। इजरायली एपिडेमोलॉजिस्ट हगाई लवीने की अगुवाई में इस बारे में एक और रिसर्च हुई। इस रिसर्च के नतीजों ने दुनिया भर में साइंटिफिक कम्युनिटी को चिंता में डाल दिया।
55 देशों और करीब 57 हजार पुरुषों पर हुई इस रिसर्च में सामने आया कि 1973 से लेकर 2018 तक पुरुषों का स्पर्म काउंट 51% घटा। जहां 1973 में पुरुषों का स्पर्म काउंट 10.12 करोड़/मिली था, वहीं 2018 में घटकर यह 4.9 करोड़/मिली रह गया।
हालांकि इसके कारणों पर वैज्ञानिक अभी एक मत नहीं हो पाए हैं। क्योंकि खानपान से लेकर बढ़ते तापमान तक सभी चीजें स्पर्म के नंबर को कम कर सकती हैं। इसे नीचे लगे ग्राफिक से समझते हैं।
क्या मोबाइल फोन से होती है नपुंसकता?
रिसर्च में इस बारे में कोई बात सामने नहीं आई है कि घटे स्पर्म काउंट से इंफर्टिलिटी या नपुंसकता का खतरा है। ब्रिटेन की शेफील्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एलन पेसी इस रिसर्च के आंकड़ों को लेकर भी चिंता जाहिर करते हैं। उनका कहना है कि इस रिसर्च के आंकड़े काफी पुराने हैं और उनकी गुणवत्ता पर भी अभी संदेह है।
पेसी का मानना है कि 1973 के मुकाबले अब विज्ञान और टेक्नोलॉजी में काफी बदलाव आए हैं। पहले के मुकाबले आज ज्यादा एक्युरेट तरीके से स्पर्म काउंट किया जा सकता है। एक वजह यह भी हो सकती है कि आज पुरुषों में स्पर्म काउंट कम दिख रहा है। हमें इस बारे में अभी और रिसर्च की जरूरत है।
क्या कहता है WHO
हालांकि 4.9 करोड़/मिली स्पर्म काउंट भी बहुत कम नहीं है और इसके नपुंसकता से जुड़े होने के कोई सबूत इस रिसर्च में सामने नहीं आए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) के मुताबिक 1.5 - 2.0 करोड़/ मिली स्पर्म काउंट नॉर्मल है। लेकिन क्या इंफर्टिलिटी बढ़ाने को लेकर मोबाइल पूरी तरह से बेदाग है?
मोबाइल पूरी तरह निर्दोष भी नहीं
क्लीवलैंड क्लिनिक के मेंस हेल्थ स्पेशलिस्ट नील पारेख का मानना है कि भले फोन पास रखने से इंफर्टिलिटी के बारे में अभी और शोध की जरूरत हो। लेकिन फोन के इस्तेमाल से स्पर्म क्वालिटी और काउंट पर असर जरूर आ सकता है। हमें इसके पीछे के मनोवैज्ञानिक कारणों को भी समझना होगा।
वो आगे कहते हैं कि बार-बार फोन और सोशल मीडिया के इस्तेमाल से साइकोलॉजिकल स्ट्रेस हो सकता है। और ये स्ट्रेस सीमेन और स्पर्म क्वालिटी पर बुरा असर डाल सकता है।
कैसे दुरुस्त रखें रिप्रोडक्टिव हेल्थ
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विकासशील देशों में हर 4 में से 1 कपल इंफर्टिलिटी के दर्द से जूझ रहा है। वहीं इंडियन जरनल ऑफ कम्यूनिटी मेडिसिन में आई एक रिसर्च के मुताबिक हमारे देश में करीब 1.3 करोड़ कपल इंफर्टिलिटी के शिकार हैं। कारण चाहे जो भी हों लेकिन समय रहते अगर स्पर्म काउंट पर ध्यान न दिया गया तो इसके अंजाम भी भुगतने पड़ सकते हैं।