Relativies Phobia: क्या आप भी डरते है रिश्तेदारों से मिलने से, इस बीमारी के शिकार हो सकते है आप
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Relativies Phobia: त्योहारों का मौसम यानी लोगों से मिलना-जुलना, रिश्तेदारों के यहां जाना या फिर अपने घर पर उनका स्वागत करना। फिर बैठकें और उसमें निकलती बातों की लंबी लड़ियां, दूसरे रिश्तेदारों के चर्चे।
रिटायर्ड लोगों के लिए ऐसे चर्चे दिल बहलाने और गुजरे जमाने को याद करने का अच्छा शगल होते हैं। लेकिन बच्चे और नौजवान अक्सर इन बैठकों, बातचीत और रिश्तेदारों से कन्नी काटने के फिराक में रहते हैं।
अगर आप इसे स्वभाव का सहज हिस्सा मानते हैं तो नए सिरे से सोचने की जरूरत है। साइकोलॉजी में गहन रिसर्च करने वाले लोग इसे एक तरह का फोबिया बताते हैं, जिसे उन्होंने ‘सिंजेनेसोफोबिया’ नाम दिया है। इसका सीधा सा अर्थ है- रिश्तेदारों से लगने वाला डर।
अब चाहे बच्चे जितनी कोशिश कर लें, अतिथियों को भगवान मानने वाले इस देश में त्योहारों के वक्त रिश्तेदारों से बचना संभव नहीं। आपको उन्हें फेस करना ही होगा। इनमें से कुछ रिश्तेदार आप से पढ़ाई, नौकरी, उम्र और शादी को लेकर असहज करने वाले सवाल भी पूछ सकते हैं।
क्या है रिश्तेदारों से डरने और बचने का मनोविज्ञान
रिश्तेदारों से भरे कमरे में बैठने मात्र से पसीना बहने लगे, दिल की धड़कनें तेज हो जाएं, ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव हो, सांसें चढ़ने लगें तो इसका मतलब है कि शख्स ‘सिंजेनेसोफोबिया’ का शिकार है।
आमतौर पर इसके यही लक्षण दिखते हैं, लेकिन कुछ गंभीर मामलों में इससे ट्रॉम टिगर हो सकता है और शख्स अपनी सुधबुध भी खो सकता है। उसे पैनिक अटैक होने की आशंका भी होती है। ऐसे में ‘ट्रॉमा ट्रिगर’ के लिए पहले से तैयार रहना जरूरी है।
अनचाहे रिश्तेदारों से मिलने पर ट्रॉमा ट्रिगर को कैसे करें काबू
आपने जान लिया है कि रिश्तेदारों और उनकी सोहबत से डर सिर्फ स्वभाव का मामला नहीं है। इसे बस ‘फलां तो शर्मीला है’ के तराजू से भी नहीं तौला जा सकता है। यह एक फोबिया है। गंभीर मामले में इसके इलाज और काउंसिलिंग की भी नौबत आ सकती है।
हालांकि छोटे-मोटे मसलों के लिए डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती। साइकोलॉजी की कुछ रिसर्चों के सहारे घर बैठे खुद ही इस ट्रॉमा से बचने के उपाय किए जा सकते हैं।
अमेरिका में एक एनजीओ है- CPTSD फाउंडेशन यानी ‘कॉम्प्लेक्स पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्ड फाउंडेशन।’ यह एनजीओ लोगों को ट्रॉमा और पैनिक अटैक से निकलने के तरीकों के बारे में जागरूक करता है। रिसर्च के आधार पर CPTSD फाउंडेशन ने रिश्तेदारों से मिलने पर होने वाली घबराहट, ट्रॉमा और पैनिक अटैक को रोकने के कुछ तरीके बताए हैं-
रिश्तेदारों के ताने सताएं तो पांच ज्ञानेंद्रियों का रखें ख्याल
CPTSD फाउंडेशन के मुताबिक ‘सिंजेनेसोफोबिया’ और इससे होने वाले ट्रॉमा ट्रिगर और पैनिक अटैक से बचने के लिए अपनी पांच ज्ञानेंद्रियों का ख्याल रखना जरूरी है। ये पांच ज्ञानेंद्रियां हैं- आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा।
इन ज्ञानेंद्रियों को अच्छा महसूस कराया जाए तो दिमाग तक खुद-ब-खुद ‘ऑल इज वेल’ का सिग्नल जाने लगेगा और शख्स बेहतर फील करेगा। फिर यह भी संभव है कि वह रिश्तेदारों से नॉर्मल होकर बात करना और घुलना-मिलना शुरू कर दे।
कॉमन इंटरेस्ट के टॉपिक पर करें बात, शादी के बारे में खुलकर बताएं
रिश्तेदारों से घुलने-मिलने में सबसे बड़ी रुकावट उनके और नई उम्र के बच्चों के बीच सोच का फर्क भी है। रिश्तेदार ‘शादी कब करोगे’ से लेकर ‘कितनी तनख्वाह मिलती है’ जैसे स्ट्रेट फॉरवर्ड क्वेश्चन पूछना पसंद करते हैं। दूसरी ओर, नई पीढ़ी को अपनी प्राइवेसी पसंद होती है। नतीजतन जवाब देने वाला असहज हो जाता है।
इसलिए जरूरी है कि रिश्तेदारों से घुलते-मिलते हुए कॉमन इंटरेस्ट के टॉपिक तलाशे जाएं। पर्सनल सवालों से इतर क्रिकेट, फिल्म, फूड या घूमने-फिरने की बातें की जा सकती हैं।
रिश्तेदार शादी वगैरह के बारे में असहज करने वाले सवाल पूछें तो खुलकर इनकार करें या अपना प्लान बताएं। यह भी नहीं करना चाहते हैं कि उनको इज्जत और बेबाकी के साथ किसी और टॉपिक पर बात करने के लिए कहें।
ट्रॉमा बॉन्ड को तोड़ें, रिश्ते ढोएं नहीं, निभाएं
रिश्ते की साइकोलॉजी में एक टर्म अक्सर आता है- ‘ट्रॉमा बॉन्ड’। आसान भाषा में समझें तो इसका मतलब है ट्रॉमा बन चुके रिश्ते से बॉन्डिंग। यानी किसी टॉक्सिक रिश्ते को जबरन ढोना।
ऐसी स्थिति में एक ओर ट्रॉमा रिश्ते को मुश्किल बनाता है तो दूसरी ओर बॉन्डिंग उससे दूर नहीं होने देती। ट्रॉमा बॉन्ड किसी भी रिश्ते में बन सकता है। चाहे वह खून का रिश्ता हो या नाते-रिश्तेदारी का या फिर कोई रोमांटिक रिलेशनशिप।
यही बात रिश्तेदारों से डर के मनोविज्ञान पर भी लागू होती है। लोग रिश्तेदारों की बातें, उनकी आदतें नापसंद तो करते हैं, लेकिन कभी खुलकर बता नहीं पाते। जिसके चलते कई बार रिश्ते में ज्यादा मुश्किल स्थिति आ जाती है। इसलिए जरूरी है कि ‘ट्रॉमा बॉन्ड’ के शुरुआती दौर में ही ट्रॉमा को खत्म कर बॉन्ड को मजबूत किया जाए।
गिफ्ट देने से कम होता है रिश्तेदारों का डर
CPTSD फाउंडेशन की रिसर्च बताती है कि अगर गिफ्ट लेकर किसी रिश्तेदार के घर जाएं या अपने घर आने पर उसे कोई तोहफा दें तो लोग बातचीत के दौरान कॉन्फिडेंस महसूस करते हैं। इससे संभावित ‘सिंजेनेसोफोबिया’ की आशंका भी काफी हद तक कम हो जाती है।
दिवाली पर आप घर जाएंगे या ढेरों रिश्तेदार घर आएंगे। इस सीजन में रिश्तेदारों से मिलना-जुलना होगा ही। असहज करने वाले सवालों की बौछार की भी पूरी आशंका है। आपने रिश्तेदारों से डर के मनोविज्ञान को समझ लिया है और यह भी कि यह अनायास और लाइलाज नहीं। ऊपर बताए गए उपायों को अपनाकर रिश्तेदारों के संग स्वस्थ और खुशहाल रिश्तों की नींव रखी जा सकती है।