DU Student Union Election: जानिए डीयू के स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन में प्रेसिडेंट पद के लिए कितना खर्च करते है कैंडिडेट्स, लिंगदोह कमेटी के गाइडलाइंस का नहीं दिखा असर

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 DU Student Union Election: जानिए डीयू के स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन में प्रेसिडेंट पद के लिए कितना खर्च करते है कैंडिडेट्स,  लिंगदोह कमेटी के गाइडलाइंस का नहीं दिखा असर

DU Student Union Election:  आज यानी 22 सितंबर को दिल्ली यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन का इलेक्शन है। कॉलेज पोस्टर और पंफलेट से अटे पड़े हैं। DU के नॉर्थ कैंपस में मेट्रो स्टेशन से लेकर, रास्ते, फुटपाथ, गमले, क्यारियां, साइकल स्टैंड हर जगह पंफलेट दिख रहे हैं। कागज से भरी सड़कों से फॉर्च्यूनर और लैंबॉर्गनी जैसी महंगी गाड़ियां निकल रही हैं। इनमें बैठे लड़के कागज से पटी सड़क पर और पंफलेट उछालते हुए निकल जाते हैं।


छात्रसंघ चुनाव की गाइडलाइंस बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में एक कमेटी बनाने का आदेश दिया था। इसके बाद बनी लिंगदोह कमेटी ने सिफारिश की थी कि एक कैंडिडेट प्रचार पर 5 हजार रुपए ही खर्च करेगा। पर वर्कर्स बताते हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रेसिडेंट इलेक्शन पर 60 लाख से 1 करोड़ रुपए तक खर्च हो जाते हैं।


4 साल बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में इलेक्शन
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पिछली बार 2019 में चुनाव हुए थे। इसके बाद अब इलेक्शन हो रहे हैं। इसके बाद तीन साल तक कोरोना की वजह से चुनाव नहीं हुए। इसलिए इलेक्शन की तारीख आते ही सभी छात्र संगठन एक्टिव हो गए। 15 सितंबर तक नॉमिनेशन हुए। 21 सितंबर की सुबह 8 बजे तक प्रचार चला। पार्टियों ने अपने मैनिफेस्टो भी जारी किए।

चुनाव पर आखिर कितना खर्च होता है, ये सवाल हमने प्रचार कर रहे स्टूडेंट लीडर से पूछा। पहचान न बताते हुए उसने जवाब दिया, ‘एक कैंडिडेट एक करोड़ रुपए तक खर्च कर देता है। प्रेसिडेंट कैंडिडेट का चुनाव लड़ना है, तो कम से कम 60 लाख रुपए होना ही चाहिए। हिंसा, भीड़ जुटाना, दूसरे कैंडिडेट्स से ज्यादा अमीर दिखाना, ये सब चुनाव जीतने के लिए जरूरी है।

पता चला कि दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ का चुनाव नेशनल पॉलिटिक्स में जगह बनाने का रास्ता है। यही वजह है कि सभी कैंडिडेट्स पूरी ताकत लगा देते हैं। भीड़ जुटाने से लेकर, पार्टी और बैनर पोस्टर तक भरपूर पैसा खर्च किया जाता है।

चुनाव में भीड़ जुटाने पर सबसे ज्यादा खर्च
दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनावों में छात्रों की भीड़ जुटाना सबसे अहम होता है। भीड़ देखकर ही स्टूडेंट्स के बीच कैंडिडेट को लेकर माहौल बनता है। किसके नॉमिनेशन में ज्यादा भीड़ हुई, किसकी गाड़ी के पीछे ज्यादा स्टूडेंट हैं, किसके समर्थन में ज्यादा छात्र सड़कों पर या कैंटीन में दिखते हैं, इसके जरिए उस कैंडिडेट की हवा बनाई जाती है।

यूनिवर्सिटी में नए सेशन की शुरुआत होने के साथ ही चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट भीड़ जुटाना शुरू कर देते हैं। कैंपस के हर कॉलेज में ABVP और NSUI 5 रुपए में नए मेंबर जोड़ने की मुहिम चलाते हैं।


पेड प्रमोशन और भीड़ जुटाने के लिए रेट कार्ड
यूनिवर्सिटी कैंपस में ऐसे कई ऐसे लोग मिले, जो न यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं और न ही आसपास रहते हैं। ये दिल्ली के दूरदराज के इलाकों से आते हैं। इनके जिम्मे पंफलेट बांटने जैसे काम रहते हैं। ये लोग ही पैसे से जुटाई भीड़ का हिस्सा हैं।

ये 600 रूपये से लेकर 1200 रूपये तक पैसे लेकर आने वाले होते है | लड़के या लड़कियां आते हैं, जो कॉलेज के बाहर खड़े होकर पंफलेट, पेन या चॉकलेट बांटते हैं। कुछ ऐसे होते है | जो एक्टिव होते हैं और उन्हें दिल्ली यूनिवर्सिटी के बारे में पता होता है। ये दिल्ली यूनिवर्सिटी के ही स्टूडेंट होते हैं। इनका काम चोरी छिपे दूसरे कॉलेज में जाकर अपने कैंडिडेट्स के लिए प्रचार करना होता है।
तो वही कुछ स्टूडेंट्स का कम्युनिकेशन स्किल अच्छा होता है। ये दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले करीब 70 हजार स्टूडेंट्स को फोन कर अपने कैंडिडेट्स के लिए वोट मांगते हैं। फोन कॉल से आइडिया लग जाता है कि स्टूडेंट किस पार्टी या किस कैंडिडेट को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। पेड प्रमोशन वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स ही होते हैं। इनके काम की टाइमिंग सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक यानी कॉलेज टाइमिंग से मैच करती है।

इनका काम कैंडिडेट्स के लिए अलग -अलग तरीके से प्रचार करना होता है और सायं को अपनी दिहाड़ी लेकर अगले दिन आने का बोल कर निकल जाते है | 

फर्स्ट ईयर स्टूडेंट के लिए पूल पार्टी, बर्गर-पिज्जा, मूवी शो
दिल्ली यूनिवर्सिटी में फर्स्ट ईयर स्टूडेंट को अपने पाले में करने के लिए छात्र संगठन कई तरह की सुविधाएं देते हैं। फर्स्ट ईयर के छात्र इसलिए इनके टारगेट पर होते हैं, क्योंकि सेकेंड या थर्ड ईयर वाले छात्रों का चुनाव से मोहभंग हो चुका होता है। ज्यादातर तो वोट देने भी नहीं जाते।

किराए पर आए स्टूडेंट कैंडिडेट के साथ होते हैं। कैंडिडेट कॉलेज में वोट मांगने जाते हैं, तो इन स्टूडेंट के हाथ में पेन और चॉकलेट होती है। बताया जाता है कि इलेक्शन के 15 दिन पहले कई कैंडिडेट हर कॉलेज में फ्रेशर पार्टी करवाते हैं। ये कॉलेज कैंपस के बाहर होती हैं, क्योंकि इनमें कॉलेज का कोई रोल नहीं होता।

इस पार्टीज में नए स्टूडेंट्स के लिए गिफ्ट और खाना-पीना होता है। पार्टी में आए स्टूडेंट्स को संबोधित करने के लिए इलाके के विधायक या मंत्री आते हैं, ताकि कैंडिडेट के लिए वोट मांग सकें। इलेक्शन के 10 दिन पहले दिल्ली के सबसे शानदार वाटर पार्क में ले जाया जाता है। शॉपिंग कार्ड या फिर मूवी टिकट दिए जाते हैं।

लिंगदोह कमेटी की सिफारिश- एक कैंडिडेट सिर्फ 5 हजार रुपए खर्च करे
छात्र संघ के चुनाव किस तरह कराए जाने चाहिए, इसके लिए 2006 में लिंगदोह कमेटी ने अपनी सिफारिशें दी थीं। इन्हें सुप्रीम कोर्ट ने भी मंजूर किया था। इसके अनुसार एक कैंडिडेट सिर्फ 5 हजार रुपए खर्च कर सकता है। कमेटी ने कहा था कि प्रचार में किसी भी तरह के प्रिंटेड पोस्टर्स का इस्तेमाल नहीं होगा और इन्हें यूनिवर्सिटी की कुछ तय जगहों पर ही लगाया जाएगा।


हालांकि, दिल्ली यूनिवर्सिटी में इन सिफारिशों का असर नहीं दिखा। लिंगदोह कमेटी के नियमों पर हमने ABVP के प्रेसिडेंट कैंडिडेट तुषार डेढ़ा से पूछा तो वे मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘मैं तो सुबह घर से निकलता हूं। कोई दोस्त गाड़ी ले आता है, कोई कुछ ले आता है। मेरे तो 5 हजार रुपए खर्च नहीं होते।’

ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन यानी AISA की कैंडिडेट आयशा अहमद कहती हैं, ‘दूसरे कैंडिडेट महंगी गाड़ियों से घूमते हैं, लाखों रुपए के पंफलेट उड़ाते हैं। हमारा यूनियन इकलौता है, जिसके वर्कर मेट्रो और रिक्शा से चलते हैं।’

आयशा लिंगदोह कमेटी पर सवाल उठाते हुए कहती हैं कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स में रहकर 75% अटेंडेंस रखना नामुमकिन जैसा है। कमेटी की सिफारिशों पर सभी यूथ विंग सवाल उठाते रहे हैं।’

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