वर्किंग विमेन मेटरनिटी लीव पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया बड़ा फैसला
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दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक एतिहासिक आदेश दिया है जिसमे देश की वोर्किंग लाखों महिलाओं को फायदा कहा कि सभी प्रेग्नेंट वर्किंग विमेन मेटरनिटी बेनिफिट (गर्भावस्था के दौरान मिलने वाले लाभ) की हकदार हैं।
उनके परमानेंट या कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने से फर्क नहीं पड़ता। उन्हें मेटरनिटी बेनिफिट एक्ट 2017 के तहत राहत देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस चंद्र धारी सिंह की बेंच ने दिल्ली स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (DSLSA) में संविदा पर काम करने वाली एक गर्भवती महिला को राहत देते हुए यह टिप्पणियां की।
दरअसल, कंपनी ने महिला को मेटरनिटी बेनिफिट देने से इनकार किया था। कंपनी का कहना था कि लीगल सर्विसेज अथॉरिटी में संविदा कर्मचारी को मेटरनिटी बेनिफिट देने का कोई क्लॉज (प्रावधान) नहीं है।
कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट चारू वली खन्ना पेश हुईं। वहीं, DSLSA के ओर से एडवोकेट सरफराज खान ने दलीलें पेश कीं।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये बातें भी कहीं-
बच्चा पैदा करने की स्वतंत्रता महिला का मौलिक अधिकार है, जो देश का संविधान अपने नागरिकों को अनुच्छेद 21 के तहत देता है।
किसी भी संस्था और संगठन का इस अधिकार के इस्तेमाल में बाधा डालना न केवल भारत के संविधान के दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के भी खिलाफ है।
महिला जो बच्चे के जन्म की प्रक्रिया के दौरान कई तरह के शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों से गुजर रही है, उसे अन्य लोगों के बराबर काम करने के लिए मजबूर करना ठीक बात नहीं है। यह निश्चित रूप से समानता की वो परिभाषा नहीं है जो संविधान निर्माताओं के दिमाग में थी।