चन्द्रयान-3 मिशनः क्या लैंडर की साफ्ट लैंडिग हो पाएगी सम्भव, ISRO ने क्या किया बडा दावा, आइए जानते है...!
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चन्द्रयान-2 मिशन के पश्चात यह इसरो का दूसरा अंतरिक्ष मिशन है। चन्द्रयान-3 मिशन की तैयारिया बङे जोरों-शोरों से शुरू हो गयी है। चन्द्रयान-3, चन्द्रयान-2 का अनुवर्ती है।
चन्द्रयान-3, चन्द्रमा तक जाने और उसकी जानकारी प्राप्त करने वाला इसरो का तीसरा अंतरिक्ष मिशन है। चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) मिशन की तैयारियां इसरो में जोरो-शोरो से चल रही हैं। चंद्रयान-3 को रॉकेट के ऊपरी हिस्से में रखा गया है।
इसके बाद उसे असेंबलिंग यूनिट में ले जाकर जीएसएलवी-एमके3 (GSLV-MK3) रॉकेट से जोड़ दिया गया है। भारत के लिए यह एक बेहद रोमांचक क्षण है। जबकि चंद्रयान-3 देश का सबसे महत्वाकांक्षी स्पेस मिशन है। पहले दो चंद्र अभियानों के बाद यह तीसरा प्रयास है।
इस मिशन को 12 से 19 जुलाई के बीच लॉन्च किया जाएगा। संभावित लॉन्च डेट 13 जुलाई 2023 है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो इसे आंध्रप्रदेश के तट पर मौजूद श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा। लॉन्चिंग के लिए जीएसएलवी-एमके3 राकेट का इस्तेमाल किया जाएगा। चंद्रयान-3 मिशन इसरो के चंद्रयान-2 मिशन का फॉलो-अप मिशन है। यानी पिछली बार जो गलती हुई थी। उसे सुधारने और अपनी क्षमता प्रदर्शित करने का मिशन। यह मिशन 75 करोड रूपए का है।
क्या जाएगा इस मिशन में?
चंद्रयान-3 मिशन में इस बार सिर्फ एक लैंडर और रोवर जा रहे है। चंद्रयान-2 की तरह इस बार ऑर्बिटर नहीं जा रहा है। ऑर्बिटर यानी जो चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाता है। लैंडर यानी वो चौपाया यंत्र जो स्पेसएक्स के रॉकेट की तरह जमीन पर उतरेगा। इसके अंदर रखा रहेगा रोवर। यह रोवर मतलब चलने वाला यंत्र।
कहां जाएगा चन्द्रयान-2??
इसरो चीफ डॉ. एस सोमनाथ के अनुसार चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 के लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी गोलार्ध या दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग कराया जाएगा।
किस रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा?
चंद्रयान-3 मिशन को GSLV-MK3 रॉकेट से अंतरिक्ष में 100 किलोमीटर ऊपर की कक्षा में छोड़ा जाएगा। यह रॉकेट करीब 6 मंजिला ऊंची इमारत जितना लंबा है। यह तीन स्टेज का रॉकेट है। इसका वजन 640 टन है। यह अपने साथ 37 हजार किलोमीटर ऊंची जियोसिंक्रोनस ट्रांसफरऑर्बिट में 4000 किलोग्राम वजनी सैटेलाइट ले जा सकता है।
वहीं, 160 से 1000 किलोमीटर की ऊंचाई वाली लोअर अर्थ ऑर्बिट में 8000 किलोग्राम वजनी सैटेलाइट छोड़ सकता है. चंद्रयान-3 मिशन का कुल वजन 3900 किलोग्राम है जिसमें प्रोपल्शन मॉड्यूल 2148 किलोग्राम का है. जबकि लैंडर मॉड्यूल 1752 किलोग्राम है. रोवर का वजन 26 किलोग्राम है।
क्या चंद्रयान-3 में जाएगा ऑर्बिटर??
चंद्रयान-3 में किसी तरह का ऑर्बिटर नहीं है. क्योंकि इसरो चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर से चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के जरिए संपर्क साधेंगे. लैंडर-रोवर से मिली जानकारी को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के जरिए या सीधे लैंडर के जरिए इसरो का डीप स्पेस नेटवर्क रिसीव करेगा.
इस मिशन का मुख्य उद्देश्य?
1. चंद्रयान-3 के लैंडर की सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन करना।
2. रोवर को चांद की सतह पर चला कर दिखाना।
3. लैंडर और रोवर की मदद से साइंटिफिक जानकारी प्राप्त करना ।
चंद्रमा पर जाकर क्या करेगा चंद्रयान-3?
1. चंद्रमा पर पड़ने वाली रोशनी और रेडिएशन का अध्ययन करेगा.
2. चांद की थर्मल कंडक्टिविटी और तापमान की स्टडी करेगा चांद की थर्मल कंडक्टिविटी और तापमान की स्टडी करेगा.
3. लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की स्टडी करेगा.
4. प्लाज्मा के घनत्व और उसके बदलावों का अध्ययन करेगा.
लैंडर में लगी आधुनिक तकनीकों की जांच
1. अल्टीमीटरः ताकि ऊंचाई का पता किया जा सके.
2. वेलोसीमीटर्सः लैंडर के उतरते समय गति मापेगा.
3. इनर्शियल मेजरमेंटः यानी यान के उतरते समय गति, संतुलन को मापना.
4. प्रोपल्शन सिस्टमः लैंडर में लगे थ्रस्टर्स की सफलता जांचना.
5. नेविगेशन, गाइडेंस एंड कंट्रोलः पहले से तय स्थान पर सही से लैंडिंग कराने के लिए दिशा,. नेविगेशन, गाइडेंस एंड कंट्रोलः पहले से तय स्थान पर सही से लैंडिंग कराने के लिए दिशा, गाइडेंस और निंयत्रण करने वाले सॉफ्टवेयर्स की जांच करना.
6. हजार्ड डिटेक्शन एंड एवॉयडेंसः लैंडर में खतरों से बचने के यंत्र लगाए गए हैं. लैंडिंग के दौरान उनकी जांच करना. साथ ही उनके एल्गोरिदम का पता करना.
7 लैंडिंग लेग मैकेनिज्म की जांच करना. इस बार ऑर्बिटर के बजाय प्रोपल्शन मॉड्यूल जा रहा है. जो लैंडर को चांद की कक्षा तक पहुंचाएगा.
कितने दिन काम करेंगे लैंडर-रोवर?
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लैंडर-रोवर चंद्रमा पर 14 दिनों तक काम करेंगे. हो सकता है कि इससे ज्यादा या कम भी करें.
कैसे स्थापित होगा संपर्क?
रोवर अपना डेटा सिर्फ लैंडर को भेजेगा. लैंडर रोवर और अपना डेटा सीधे IDSN यानी इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से संपर्क साधेगा. इमरजेंसी की हालत में चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से संपर्क साध सकता है. चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है प्रोपल्शन मॉड्यूल सीधे IDSN से बात करेगा।
इस बार ऑर्बिटर क्यों नहीं
पहली बात ये कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर बैकअप के लिए चांद की कक्षा में मौजूद है. इसरो ने इस बार प्रोपल्शन मॉड्यूल बनाया है. यह रॉकेट से अलग होने के बाद चंद्रयान-3 को चांद की कक्षा तक पहुंचाएगा. इसमें स्पेक्ट्रो-पोलैरीमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) लगा है. इस मॉड्यूल के जरिए इसरो अंतरिक्ष में छोटे ग्रहों और एक्सो-प्लैनेट्स की खोज करेगा. साथ ही यह भी पता करेगा कि क्या वहां पर रहा जा सकता है या नहीं।