डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट: निर्यातकों को राहत, आयातकों और आमजन पर बढ़ा बोझ !

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अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 84.73 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नए आर्थिक और राजनीतिक सवाल खड़े हो गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये में गिरावट का मुख्य कारण वैश्विक और घरेलू आर्थिक दबाव हैं, जिसमें अमेरिकी नीतियों और भारत की मिश्रित जीडीपी वृद्धि का भी प्रभाव है।

डॉलर मजबूत, रुपया कमजोर: कारण और प्रभाव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 100% टैरिफ की धमकी और डॉलर को मजबूत करने वाली नीतियों ने उभरते बाजारों पर दबाव बढ़ा दिया है।

  • आयात महंगा: रुपये की कमजोरी से तेल, गैस और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे आयात महंगे हो गए हैं, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ने और मध्यम वर्ग पर आर्थिक दबाव बढ़ने की संभावना है।
  • निर्यातकों को लाभ: कमजोर रुपया निर्यातकों, खासकर आईटी, फार्मास्युटिकल और कपड़ा उद्योगों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

आरबीआई की भूमिका

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) रुपये को स्थिर रखने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है। हालांकि, डॉलर बेचने और प्रीमियम गिराने जैसे कदमों से सीमित लाभ मिला है। विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई को रुपये को स्थिर करने के लिए और प्रयास करने होंगे।

कमजोर रुपये का आम आदमी पर असर

  • महंगाई: आयातित वस्तुओं की बढ़ती लागत के कारण मुद्रास्फीति बढ़ेगी, जिससे क्रय शक्ति घटेगी।
  • विदेशी निवेश: रुपये की गिरावट से विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से दूरी बना सकते हैं।

किन सेक्टरों को फायदा?

  • आईटी और फार्मा: विदेशी राजस्व अधिक होने से इन क्षेत्रों को फायदा होगा।
  • कपड़ा उद्योग: कमजोर रुपये ने भारतीय कपड़ा उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बना दिया है।
  • रियल एस्टेट: विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय संपत्तियां अधिक आकर्षक हो सकती हैं, हालांकि निर्माण सामग्री के महंगे होने से स्थानीय डेवलपर्स पर दबाव रहेगा।

आगे की संभावनाएं

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि रुपये में गिरावट जारी रहती है, तो यह वर्ष के अंत तक 87-88 रुपये प्रति डॉलर तक जा सकता है। हालांकि, बेहतर आर्थिक प्रदर्शन, निर्यात में वृद्धि और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में नरमी से रुपये को स्थिरता मिल सकती है।

समाधान और सुधार

  • आरबीआई का सक्रिय हस्तक्षेप: विदेशी मुद्रा बाजार में स्थिरता लाने के लिए आरबीआई को सतर्क रहना होगा।
  • आर्थिक सुधार: व्यापार घाटे को कम करने और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे।

यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती और अवसर दोनों लेकर आई है। जहां एक ओर आयात महंगा होने से आम जनता पर बोझ बढ़ेगा, वहीं निर्यातकों के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हो सकता है।

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